हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,जमीयत उलमा ए हिंद की मजलिस-ए-आमिला,कार्यकारी समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक नई दिल्ली के मदनी हॉल में अध्यक्ष मौलाना महमूद असअद मदनी की अध्यक्षता में आयोजित हुई, जिसमें देश भर से आए प्रतिनिधियों और सदस्यों ने हिस्सा लिया। बैठक में मौलाना महमूद असअद मदनी को सर्वसम्मति से एक बार फिर जमीयत उलमा-ए-हिंद का अध्यक्ष चुना गया।
नाज़िम-ए-उमूमी मौलाना हकीमुद्दीन क़ासमी ने बैठक की कार्यवाही पेश की। इसके बाद जमीयत के संविधान की धारा 52 के तहत 2024 से 2027 तक के लिए मौलाना मदनी के नाम की औपचारिक घोषणा की गई। इस मौके पर मौलाना मदनी ने आधिकारिक रूप से नया कार्यभार संभाला।
मजलिस-ए-आमिला ने अपने प्रस्ताव में कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 धार्मिक ट्रस्टों औकाफ़ की धार्मिक पहचान के लिए गंभीर खतरा है। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने ऐलान किया कि वह इस कानून का संवैधानिक, कानूनी और लोकतांत्रिक स्तर पर पूरी तरह विरोध जारी रखेगी।
साथ ही “उम्मीद पोर्टल” पर पंजीकरण से संबंधित चिंताओं का उल्लेख करते हुए कहा गया कि भारत सरकार को वक्फ के मुतवल्लियों को संतोषपूर्वक पंजीकरण पूरा करने के लिए कम से कम दो वर्ष का विस्तार देना चाहिए।
बैठक में भारत सरकार, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के उन बयानों पर कड़ा विरोध दर्ज किया गया जिनमें मुसलमानों पर ग़ैरक़ानूनी घुसपैठ या जनसंख्या संतुलन बदलने के आरोप लगाए गए थे।
मजलिस-ए-आमिला ने कहा कि ये आरोप असत्य, उकसाने वाले और विभाजनकारी हैं, जो राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक समानता के लिए हानिकारक हैं। प्रस्ताव में कहा गया कि सरकार ने स्वयं सुप्रीम कोर्ट और संसद में स्वीकार किया है कि उसके पास ग़ैरक़ानूनी घुसपैठियों का कोई प्रमाणिक आंकड़ा नहीं है, इसलिए मुसलमानों पर ऐसे आरोप झूठे और निराधार हैं।
मौलाना महमूद मदनी ने अपने संबोधन में कहा कि देश में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता, धार्मिक प्रतीकों और इस्लामी शब्दावली को निशाना बनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा,सरकार और मीडिया संवैधानिक और नैतिक सिद्धांतों के उल्लंघन में बराबर के भागीदार हैं। उद्देश्य यह है कि मुसलमानों को देश में दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया जाए, लेकिन जमीयत उलमा-ए-हिंद इस योजना को कभी सफल नहीं होने देगी।
बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि मध्य पूर्व में शांति तभी संभव है जब 1967 की सीमाओं के आधार पर स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना हो, जिसकी राजधानी क़ुद्स (यरूशलेम) हो।
मजलिस-ए-आमिला ने इज़राइल की आक्रामक कार्रवाइयों और ग़ाज़ा की नाकाबंदी की कड़ी निंदा की और संयुक्त राष्ट्र, इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वे फ़िलिस्तीनी जनता की आज़ादी, पवित्र स्थलों की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए तुरंत कदम उठाएँ।
बैठक ने भारत सरकार से भी अनुरोध किया कि वह अपनी पारंपरिक विदेश नीति के अनुसार फ़िलिस्तीनी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन जारी रखे।
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